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उपयोगितावाद का अर्थ

और कैसे कहा जा सकता है कि अमुक आनन्द को प्राप्त करने में इतने कष्ट की कुछ परवाह न करनी चाहिये। इस कारण जब अधिकारी मनुष्यों का अनुभव और निर्णय बतावें कि उच्च शक्तियों द्वारा प्राप्त आनन्द, परिमाण के प्रश्न को छोड़ कर, उन आनन्दों से जिन का अनुभव जानवर भी कर सकते हैं अधिक अच्छे हैं तो उच्च शक्तियों द्वारा प्राप्त आनन्दों को ऊंचा दर्जा देना ही ठीक है।

मैं ने इस विषय की इस कारण विस्तृत विवेचना की है क्योंकि बिना इस के यह बात अच्छी तरह समझ में नहीं आ सकती कि 'उपयोगिता या सुख' किस प्रकार मानुषिक आचार के नियमों का पथ प्रदर्शक है। किन्तु उपयोगितावाद के आदर्श को मानने के लिये इस बात का मानना अनिवार्य नहीं है क्योंकि उपयोगितावाद का यह आदर्श नहीं है कि कर्ता को सबसे अधिक आनन्द मिले। उपयोगितावाद का आदर्श तो यह है कि सब को मिला कर सब से अधिक आनन्द मिले। इस बात में सन्देह हो सकता है कि क्या उच्च आचारवाला मनुष्य अपने उच्च आचार के कारण सदैव अधिक सुखी रहता है। किन्तु यह बात निस्सन्दिग्ध है कि उच्च आचार वाला मनुष्यों को अधिक सुखी बनाता है और इस कारण संसार को ऐसे मनुष्य से बहुत लाभ पहुंचता है। इस कारण उपयोगितावाद उस ही समय अपने उद्देश्य को प्राप्त कर सकता है जब कि सर्व साधारण आचार की उच्चता के महत्व को समझें।

सब से अधिक आनन्द के सिद्धान्त के अनुसार, जैसा कि ऊपर समझाया जा चुका है, अन्तिम लक्ष्य, जिस के कारण और सब बातें इष्ट हैं (चाहे हम अपने भले का विचार करें चाहे