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पृष्ठ:उपयोगितावाद.djvu/६३

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दूसरा अध्याय


यदि सत्य को छिपाने अर्थात् झूठ बोलने से ही काम चल सकता हो तो ऐसा किया जा सकता है। किन्तु फिर भी ऐसे अपवाद की सीमायें निर्धारित कर देना चाहिये जिससे बिना आवश्यकता के ही लोग अपवाद की शरण न लेने लगे और एक दूसरे के कथन को अविश्वसनीय न समझने लगे। यदि उपयोगितावाद का सिद्धान्त कुछ भी उपयोगी है तो यह सिद्धान्त इस काम के लिये उपयोगी होना चाहिये कि दो उपयोगिताओं में संघर्ष उपस्थित होने पर दोनों की तुलना करके इस बात का निर्णय कर सकें कि अमुक स्थान पर अमुक उपयोगिता उच्च स्थान की अधिकारी है तथा अमुक स्थान पर अमुक।

उपयोगितावादियों को बहुधा इस प्रकार के प्राक्षेपों का भी उत्तर देना पड़ता है कि काम करने से पहिले हमको इतना समय नहीं मिलता कि हम इस बात को सोच सकें कि इस कार्य का जनसाधारण के सुख पर क्या प्रभाव पड़ेगा। यह आक्षेप तो ऐसा है कि जैसे कोई कहे कि ईसाई मत के अनुसार कार्य करना असम्भव है क्योंकि प्रत्येक अवसर पर जब कुछ काम करना हो पुराने तथा नये टैस्टैमैन्ट (Testament) को पढ़ने का समय नहीं मिल सकता। इस आक्षेप का उत्तर यह है कि यथेष्ट समय मिल चुका है। मनुष्य जाति अब सक इस विषय पर विचार करती आई है। बहुत दिनों से मनुष्य जाति इस बात का तजुरबा करती आई है कि कौन २ से कार्य का कैसा २ परिणाम होता है तथा क्या प्रभाव पड़ता है। गत समय के तजुरबे के आधार पर ही कार्यों की प्राचारयुक्तता निर्धारित की गई है। आक्षेप करने वाले इस प्रकार की बातें