पृष्ठ:उपहार.djvu/१०५

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"तो भला छिपाते क्यों हो? क्या मैं बुरा मानती i? धुरा मानती ज़रूर, यदि मैं प्रमीला के पत्र न पढ़ को होतो । पत्र पढ़ने बाद तो मुझे उस पर क्रोध के बदले दया ही पाती है। तुम यदि मुझे उसका पता बतादो तो, मैं स्वयं उसे यहाँ लिया लाऊ। बेचारी का जीयन कितना दुखी है"। मैंने कहा-"भला मैंने कभी तुमसे झूठ भी बोला है ? यह पत्र मुझे श्राज इसी कोठरी में रद्दी कागजों में मिले हैं। जिस लिफाफे में ये चन्द थे यह भी यह है-देखो?" यह कहते हुए मैंने लिफाफा उठाकर सुशीला के सामने रख दिया। सुशीला ने पफ यार लिफाफे की ओर, और फिर मेरी ओर देखते हुए कहा। "तुम्हीं क्या पुरुष मात्र ही कठोर होते हैं।"