पृष्ठ:उपहार.djvu/१०८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
७४
 

के साथ रंग बिरंगी राखियां चमचमा रही थी। उसी समुदाय में विमला की सखो चुन्नी भी थी। चुम्नी को देखकर विमला चुप न रह सकी कौतूहल वश वह पुकार उठी- "इतनी सज सजा के कहां जा रही हो चुन्नी ? यह थाली में क्या लिए हो चमकता हुआ ? चुन्नी विमला की अनभिज्ञता पर हंस पड़ी बोली- "इतना भी नहीं जानती विन्नी !श्राज राखी है न ? हम लोग भगवान जी के मन्दिर में पूजा करने जाती हैं यहां से लौट कर फिर राखी बांधेगी"। "किसे बांधोगी राखो"? विमला ने उत्सुकता से पूछा इस प्रश्न पर सब खिलखिला के हंस पडींविमला शरमा गई । विमला चुन्नी की सहेलो थी, अपनी सपी के ऊपर इस मकार सबका हंसना उसे भी अच्छा नहीं लगा, वह विमला के पास आकर बोली- "यिनो अभी हम लोग भगवान जी की पूजा कर के उन्हें राखी बांधेगी। फिर घर आकर अपने अपने भाइयों 6 को बांधेगी । तुम भी चलो न हमारे साथ" ? "पर मेंने तो अभी अम्मा से पूछा ही नहीं" चुनी यह कह के कि "मां से पूछ कर मन्दिर में श्रा जाना" चली गई । विमला अपने हृदय में राखी बांधने की प्रयल उत्कंठा लिए हुए, चडे उत्साह से मां के पास श्राई । उसकी मां कमला, बैठी कुछ पकवान बना रही थी। वह नौ बरस की बालिका, घर में बिल्कुल अकेली होने के कारण, भी निरी वालिका ही थी। मां के गले में दोनों पाहें डालकर पीठ पर झूल गई योली-