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पृष्ठ:उपहार.djvu/१११

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'राखी तो नहीं है। कोन ला देगा मुझे?

आश्वासन के स्वर में अखिलेश बोला—

'तुम पैसे दोगी तो राखी तो में ही ला दूगा यह तो कोई बड़ी बात नहीं है। पर बिन्नो! राखी अकेली नहीं बाधी जाती, राखी बाधने के बाद बहुत से फल, मेवा, और मिठाई भी तो दी जाती है, वह तुम कहा से लाओगी"?

"मिठाई में मा से माग लूगी और कुछ नीबूं बगीचे से तोड़ लूंगी। पर पैसे तो मेरे पास दो ही है उसमें क्या राखी आ जायगी" विमला ने पूछा—

अखिल ने कहा 'दो पैसे में राखी और मिठाई में दोना तो दूंगा बिन्नो! अब तुम मा से मिठाई न मागा तब भी काम चल सकता है।"

बिमला चाहती भी यही थी कि किसी प्रकार चुपचाप राखी बंधजाय ओर माँ न जान पाए। जब उसे मालूम हुआ कि दो पैस में राखी और मिठाई दोनों आ जायगी तो उसे बड़ी प्रसन्नता हुई। उधर अखिल राखी लेने गया इधर विमता फूलों की एक माला एक नहीं सी थाली में जरा सी रोली, और अक्षत रख कर उसकी प्रतीक्षा करने लगी। उसे अधिक प्रतीक्षा न करनी पड़ी। अखिल १॥ पस की मिठाइ और घेल का एक राखी लकर कुछ ही देर में आ गया।

माली के घर सेजरा सा मीठा तेत माग कर एक मिट्टी का दिया जलाया गया, और वहीं गाधूती को पवित्र बेला में एक अबोध बालिका ने, एक चातक का दो पैर में सदा के लिए भाई का रूप में बाध लिया। तिलक लगा कर अक्षत छिडक कर विमला ने अखिल को राखी बाधी, फूलों की माला पहिना कर से मिठाई खिला दी। और अखिल ने उसी समय