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पृष्ठ:उपहार.djvu/१२९

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"तुम्हें सवेरे ही कह देना था किन चलेंगे तो मैं खवर हीन भिजवाती"।

"मैंने तो नहीं कहा था कि, मैं तुम्हारे साथ अखिल के घर चलूंगा पर तुमने खबर भिजवा दी है तो चली जाओ मैं रोकता नहीं । पर हां एक बार नहीं अनेक बार, मैं तुम पर यह प्रकट कर चुका है कि असिल से तुम्हारा बहुत मिलना जुलना मुझे पसन्द नहीं है। फिर भी तुम जैसे उसके लिए व्याकुल सी रहा करती हो, यदि तुम्हें मेरी मानसिक वेदनाओं का कुछ ख्याल ही नहीं है तो जायो ! पर मुझे क्यों अपने साथ घसीटना चाहती हो?

विमला सिहर उठी । कुछ देर बाद अपने को सम्हाल कर बोली?

"अखिल भैय्या से ही क्या तुम न चाहोगे तो मैं अम्मा और बाबू जी से भी न मिलूंगी।

विनोद ने विमला की बात का कुछ भी उत्तर नहीं दिया और बाहर चले गए। बाहर दरवाजे पर ही उन्हें उनके मित्र को वहिन अतो मिली। जो उन को भी बहुत ज्यादः चाहती थी भाई की ही तरह; और उन्हें राखी बांधने आई थी! विनोद इस समय किसी अतिथि के स्वागत के लिए तैयार न थे। विशेष कर यदि अतिथि स्त्री हो तब, अभी अभी वह विमला को अखिल से न मिलने के लिये तेज बातें कह चुके थे। दूसरे ही क्षण किसी दूसरी स्त्री के साथ जो विनोद की वैसी ही बहिन हो जैसे विमला अखिल को। विमला के पास जाने में उन्हें कुछ संकोच सा हुआ । पर यह अंतो को टाल भी तो न सकते थे, वह उसे लिये हुए विमला के पास