६६ + जाकर ज़रा कोमल स्वर में बोले- "विनो! यह अंतो राती बांधने भाई हैं, इन्हें बैठालो" विमला ने उठ कर श्रादर और प्रेम से अंतो को चैटाला तो अवश्य; पर कुछ अधिक बात चीत न कर सकी। अंतो विनोद के ही पास बैठकर इधर उधर की बातें करने लगी। विमला ने उनकी बातचीत में भी किसी प्रकार का भाग न लिया। यहां तक कि उनसे कुछ दूर पर बैठकर पान बनाने लगी । और दिन होता तो शायद विनोद से अधिक विमला ही अंतो से बातचीत करती, किन्तु आज यह बड़ी व्यथित सीथी, इसलिए चुप रही। उसकी इस उदासीनता से विनोद ने अंतो का अपमान, घर में श्राई हुई एक स्त्री अथिति का अपमान समझा। मनहो मन चिढ़ उठे। पर कुछ योले नहीं। राखी की रस्म अदा होने पर विमला अंतो और विनोद दोनों के लिए थालियां परोस लाई। अंतो ने विमला से भी भोजन करने के लिए श्राग्रह किया; किन्तु तबीयत ठीक न होने का बहाना करके विमला ने भोजन करने से इन्कार कर दिया। अब विनोद भी अपने क्रोध को न सम्हाल सके तिरस्कार सूचक स्वर में बोल उठे- "तबीयत क्यों खराव करती हो अब भी समय है राखी बांधने चली जानो" । अंतो कुछ समझी नहीं मुस्कुरा कर बोली- "राखी यांधने कहां जाभोगी भौजी।चलोखाना पहिले खा लो फिर चली जाना" विमला तो कुछ न बोली पर बिनोद फिर उसी स्वर में बोल उठे- "तुम क्या जानो श्रतो! नादमी तो यह जो थारे में
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