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पर एक टांगा खडा था जिस पर अखिलेश का एक बैग और बिस्तर रखा था। विनोद के पहुंचने से पहले ही अखिलेश आकर टांगे पर बैठ गये। उसी समय पहुचे विनोद;साइकिल वहीं फेंक कर वह भी अखिलेश की बगल में जा बेठे और सजल आखों से बोले- "चलो, कहा चलते हो अखिल ! मैं भी तुम्हारे साथ चलता हू"। अखिलेश की भी आख भर आई। ये कुछ क्षण तक कुछ बोल न सके, अन्त में, ये किसी प्रकार अपने को सम्हाल कर बोले- "तुम पागल हो विनोद । तुम्हें मेरे साथ चलने की क्या जरूरत है"। "जरूरत ? ठहरो तुम्हें अभी बतला दूगा । पर तुम यह समझ लो कि में तुम्हारा साथ स्वर्ग और नर्क तक भी न छोडूगा। यह देखो तुम्हारा इस्तीफा है"-कहते हुए विनोद ने जेब से अखिलेश का लिखा हुश्रा इस्तीफा निकाल कर टुकड़े-टुकड़े करके फेंक दिया और टांगा अपने मकान की तरफ मुड़वा लिया। नौकर ने अखिलेश का सामान विनोद के आदेशा- नुसार विनाद के कमरे में ही ले जाकर रखा। विमला समझ न सकी कि विनोद का ऐसा कौनसा आत्मीय आया है जो इन्हीं के कमरे में ठहराया जायगा ? इसी समय सीढियों पर से विनोद ने आवाज़ दी "विनो! यह डाकृर पाया है"। मिताभ नल्याएक सत्य सप्ता १. बोटक कम की