भाना चाहती थी। इसीलिए उसे बहुत कम लोग समझ पाते थे।उसे तो यही समझ सकता था जो उसके पास-बहुत पास, पहुंचकर उसे देखे। दूर से देखने वालों के लिए तो ग्रजागना पक पहली और बडी जटिल पहेली थी, जिसे हल करना कोई साधारण पात न थी। में प्रजागना के जीवन के साथ यहुत घुल मिल गया था। मैंने उसे अच्छी तरह देखा और मली भाति पहिचाना था । वजागना मानवी नहीं देवी यो, जिसे कदाचित् दैवी अभिशाप के ही कारण कुछ दिनों के लिए मानव-जन्म धारण करना पडा था। धीरे-धीरे हमारा मेल-जोल यदुत बढ गया। अब मेरे अभिन्न हदय मित्रों में से यदि कोई मेरे बहुत समीप था, नो वह थी वजागना । अपने सच्चे स्नेह और श्रादर से जागना ने मुझे इस तरह बांध लिया था कि मैं उसके छोटे-छोटे श्राग्रह और अनुरोध को भो न टाल सकता था। अब उसके अनुरोध से मेरे सभी काम नियमित रूप से होने सगे। उसके सरल प्रेम ने मुझ में नवस्फूतिं फक दी। मैं अपने आप में नए जीवन का अनुभव करने लगा। मुझे ऐसा सगता था कि जैसे मैंने अभी अभी संसार में प्रवेश किया हो। मनुप्य में दो प्रकार की प्रवृत्तियाँ होती हैं। एक तो देव प्रवृत्ति और दूसरी राक्षसी । न जाने क्यों बजागना को देखते ही मेरी देव प्रवृचि किधर अन्तहित हो जातो और राक्षसी प्रवृत्ति इतनी प्रयल हो उठती कि उसे रोकना मेरे लिए बहुत कठिन होजाता । प्रजागना को देखते ही मेरा शान, मेरा विवेक और मेरो वुद्धि जैसे सभी मेरा साथ छोड देने थे। इस के लिये मैं अपने श्राप को न जाने कितना
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