सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:उपहार.djvu/१६८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१३८

को नियाघर कर सकती थी। प्रमोद के साथ यह छोटा-सा मकान उसे नन्दन घनसे भी अधिक सुहावनाजान पड़ता था। साराश यह कि छाया को कोई इच्छा न थी। प्रमोद का प्यार और उनके चरणों की सेवा का अधिकार पाकर यह सब कुछ पा चुकी थी। भमाद के विवाह के बाद, प्रमोद के माता पिता ने उन्हें अपने परिवार में सम्मिलित नहीं किया। अपने एकलौते वेटे को त्याग देने में उन्हें कट बहुत था किन्तु प्रमाद के इस कृत्य ने समाज में उनका सिर नाचा फर दिया था, अतपव वह प्रमोद को क्षमा न कर सके। स्वाभिमानी प्रमोद ने भी माता पिता से क्षमा की याचना ने की, अपना समझ में उन्होंने कोई बुरा काम न किया था। इसलिए शहर में हो पिता क कई मकाना के रहन पर भी वह किराए के मकान में रहने लगे। परिवार और समाज ने प्रमोद को त्याग दिया था, किन्तु उनके कुछ अपने एसे मित्र थे जो उन्हें इस समय भी अपनाए हुए थे। अपने इस छोटे स, इने गिने मित्रों के ससार में, छाया के साथ रहकर प्रमोद को श्रव और किसी वस्तु की आवश्यकता न थी। श्रार्थिक कठिनाइया कभी बाधा बन कर उनके इस सुरस के सामने खड़ी हो जायगी प्रमोद को इसका ध्यान भी न था। कालेज के प्राफेसर और प्रिंसपाल को उनके साथ बडी सहानुभूति थी। उनका श्राचरण कालेज में घडा उज्वल रहा था और वह परीक्षाओं में सदा पहले ही श्राए थे। इसलिय यह थोडा ही प्रयत्न करने पर वहा प्रोफेसर हो सकते थे, परन्तु सुख की प्रात्म विस्मृति तक बाह्य अावश्यकताओं की पहुच पहा ! कालेज में एक हिन्दी के प्राफेसर का स्थान खाली भी हुया, किन्तु प्रमोद अपने सुख में इतना भूल गये थे कि उन्हें और किसी ,