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Shri I lath [uuri उन्मादिनी लो ग मुझे उन्मादिनी कहते हैं। क्यों कहते हैं, यह तो कहने वाले ही जाने; किन्तु मैंने भाज तक कोई भी ऐसा काम नहीं किया है जिसमें उन्माद के लक्षण हो। मैं अपने सभी काम नियम-पूर्वक करती हूँ। फ्या पक भी दिन मैं उस समाधि पर फूल चढ़ाना भूली हूँ ? क्या ऐसी कोई भी संध्यागई है जब मैंने वहाँदीपक नहीं जलाया है ? कौन सा ऐसा सवेरा हुआ है जब श्रोस से धुली हुई नई नई कलियों से मैंने उस समाधि को नहीं ढक दिया ? फिर भी मैं उन्मादिनी है ! यदि अपने किसी श्रात्मीय के सच्चे और नि:स्वार्थ प्रेम को समझने और उसके मूल्य करने को ही उन्माद् कहते हैं तो ईश्वर ऐसा उन्माद सभी को दे।