पृष्ठ:उपहार.djvu/४५

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क्या कहा---वह मेरा कौन था? यह तो मैं भी नहीं कह सकती; पर कोई था अवश्य, और ऐसा था, मेरे इतने निकट था कि आज यह समाधि में सोया है और मैं बावली की तरह उसके पास पास फेरी देती हूँ। उसकी और मेरी कहानी भिन्न भिन्न तो नहीं है। जो कुछ है यही है। सुनो!

बचपन से ही मुझे कहानी सुनने का शौक था। मैं बहुत सी कहानियां सुना करती और मुझे उनका यह भाग बहुत ही प्रिय लगता जहाँ किसी युवक की वीरता का वर्णन होता। मैंने वीरता की परिभाषा अपनी अलग ही बना ली थी। यदि कोई युवक किसी शेर को भी मार डाले तो मुझे वह वीर न मालूम होता; मेरा हृदय सुनकर उछलने न लगता। किन्तु यदि किसी युवती को बचाने के लिए यह किसी कुत्ते की टांग ही क्यों न तोड़ दे मुझे बड़ा वहादुर मालूम होता, मेरा हदय प्रसन्नता से उछलने लगता। पहिले उदाहरण में स्वार्थ था, क्रूरता थी, और थी नीरसता। उसके विपरीत दूसरे उदाहरण में एक तरफ थी भयग्रस्त हरिणी की तरह दो आँखें और हृदय से उठने पाली अमोघ प्रार्थना, दूसरी ओर थी रक्षा करने की स्फुति, वीर प्रमाणित होने की पवित्र अाकांक्षा, धौर विजय की लालसा। इन सबके ऊपर स्नेह का मधुर अावरण या जो इस चित्र को और भी सुन्दर बना रहा था। कहानी-प्रेम ने मेरे हृदय को एक काल्पनिक कहानी की नायिका बनने की आतुरता में उड़ना सिखला दिया था।