मुलायम पर पड़ रहे थे, वहाँ अपने धूल भरे पैरों को रखने में उस को कुछ अटपटा सा लगा। कमरे में पहुँच फर यहाँ की विभूतियों को देस फर वसन्त भौचक-सा रह गया। ऐश्वर्य के प्रकाश में उसे थपनी दशा और भी हीन मालूम होने लगी। उस वातावररा के योग्य अपने को न समझ कर कर उसे फप्ट ही हो रहा था। वह बार-यार सोचता था कि में नाहक ही यहाँ श्राया।
फुमुम अद्वितीय सुन्दरी थी। उसकी शिक्षा और यवहारिक ज्ञान ने सोने में सुहागे का सा काम कर दिया था। उसके शरीर पर श्राभूषणों का विशेष शाडम्बर न था। यह एक साफ़ लाल किनारी की साडी पहिने थी जो उसकी कान्ति से मिलकर थौर भी उज्ज्वल मालम हो रही थी। कुसुम का व्यवहार घड़ा शिष्ट था, उसकी वाणी में संगीत का सा माधुर्य था। यह चतुर चितेरे की चित्र की तरह मनोहर, कुशत शिल्पी की कृति की तरह श्रुटि रहित, और सुकवि की कल्पना की तरह मुन्दर थी। यसत के जीवन में किसी युवती चालिफा से बातचीत करने का यह पहला ही अवसर था। उसने कुसुम की ओर एक बार देखा फिर उसकी प्राखें ऊपर न उठ सकी। कुसुम ने चांदी के-से सुन्दर प्यालों में चाय यना करटेबिल पर रखी। तश्तरियों में जलपान के लिए फल और मिठाइयां सजा दी। वसंत स्वभाव से ही शिष्ट था। किन्तु आज वह साधारण शिष्टाचार की बात करना भी भूल गया और उसने चुपचापचापीना शुरू कर दिया । कुसुम यदि कोई यात पूछ बैठती तो वसंत का चेहरा अकारण ही लाल हो जाता। और उसका हृदय इस प्रकार धड़कने लगता जैसे वद किसी फठिन परीक्षा के सामने पेश हो । चाय पीते-पीते