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मजिस्ट्रेट ने फिर पूछा- "तुम्हारा पेशा क्या है?"
"मैं मजदूरी करती हूँ और जब काम नहीं मिलता तब भीख मांगती हूँ"-अभियुक्ता ने कहा।


मजिस्ट्रेट ने प्रश्न किया--"रहती कहाँ हो।"
"जहां जगह मिल जाती है।"
"तुमने बैरिस्टर गुप्ता के घर नौकरी की थी ?"
"जी हाँ ?"
"यह चेन तुमने उनके बच्चे के गले से चुराई !" -चेन को हाथ में लेकर मजिस्ट्रेट ने पूछा।


अभियुक्ता ने बैरिस्टर गुप्ता की ओर देखा । उसकी इस दृष्टि से घृणा और क्रोध टपक रहे थे। फिर उसने मजिस्ट्रेट की ओर देख कर दृढ़ता से कहा-"मैंने जंजीर चुरायी नहीं; वह मेरी ही है।"



यह सुनते ही बैरिस्टर गुप्ता के मुंह से व्यङ्ग पूर्ण उपहास की हलकी हंसी निकल गयी । इस व्यङ्ग से अभियुक्ता का चेहरा क्षोभ से और भी लाल हो उठा। उसने विक्षित क्रोध के स्वर में कहा-"मैं फिर कहती हैं कि जंजीर मेरी है। मेरी माँ ने मरते समय यह मुझे दी थी और कहा था कि यह तेरे पिता की यादगार है, इसे सम्हाल के रखना।"


मजिस्ट्रेट ने पूछा-"तुम बैरिस्टर साहब के घर से रात को भाग गयी थीं ?"



कुछ क्षण के लिए अभियुक्ता चुप-सी हो गयी । आहत अपमान उसके चेहरे पर तड़प उठा। फिर कुछ सोचकर वह