पृष्ठ:उपहार.djvu/८७

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कि विवाह के बाद मुझे भी बहुत से गहने और कपडे मिलेंगे, जैसे दूसरी विवाहिता लड़कियों को मिला करते हैं । उनके समान में भी अपने घर की मालकिन वनूगी। मेरे 'वे' भी बहुत सा रपया लाकर मेरे हाथों पर रख दिया करेंगे और तरमैं भी मनमाना खर्च करूंगी। बाजार में कोई अच्छा कपडा या गहना देखते ही घे भी मेरे लिए खरीद लावेंगे और में उसे उसी अभिमान से पहिनूगी जैसे ये पहिनती हैं। किसी के पूछने पर में भी जरा संकोच और सलज भाव से कह दूगी कि यह गहना या कपडा तो खुद वे ही अपनी पसंद से मेरे लिए खरीद लाए हैं। उसे विश्वास था कि जय विधाता ने उसे सुन्दरता देने में इतनी उदारता को है तर यह गहने-कपडे की इच्छा भी एक न एक दिन अवश्य पूरी होगी। वह उस दिन की प्रतीक्षा बड़ी लगन से किया करती।

[ २ ]

धीरे-धीरे विन्दो सयानी हुई और उसका विवाह भी हो गया। किन्तु निर्धन की बेटी भला धनवान के घर कैसे व्याहो जाती? मित्रता-चर भोर विवाह-सगाई तो अपने यगरी चालों में ही शोभा देते हैं। तात्पर्य यह कि विन्दो के गहने-कपडों की प्यास ज्यों की त्यों बनी रही। विराह के समय कुछ गहने और कपडे पाए अवश्य थे; किन्तु ससुराल पहुंचने के बाद ही ये एक एक करके किसी न किसी बहाने चिन्दी से ले लिए गए । विन्दो समझ गई कि वह गहने उसके नहीं हैं। बेचारी जी मसोस कर रह गई, और करती मोक्या? F.4