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विन्दो की ससुराल में खेती-धारी होती थी। परिवार
बड़ा था। विन्दो की दो जिठानियां थीं और एक अविवाहित
देवर। तीन भाई तो खेती का काम मन लगाफर करते थे;
किन्तु विन्दो के पति जवाहर का मन खेती के कामों में न
लगता था। वह स्वभाव से ही कुछ शौकीन थे। उनकी
गाने बजाने की तरफ विशेष रुचि थी। कुश्ती लड़ने और
पहलवानी करने का भी शौक था। गठे हुए बदन पर सदा
मलमल या तनजेव का कुरता रहता; धुंघराले बाल सदा
किसी न किसी सुगंधित तेल से बसे रहते। स्वभाव में
आत्माभिमान की मात्रा भी अधिक थी। वे कुछ न कमा
कर भी घर भर पर अपना रोव जमाये रहते।
बिन्दो कुछ पढ़ी-लिखी होने के कारण उस देहात
में आदर की वस्तु हो गई थी; विशेषकर उस समय अवश्य,
जब वह रामायण या महाभारत पढ़ती और गांव की अनेक
स्त्रियां वहां एकत्र हो जाती। वे बिन्दो की सास के भाग्य
को सराहना करतीं और कहती-"यह लक्ष्मी-सी बहु तुम्हारे
घर आई है; इसके कारण भगवान के दो बोल हम लोग
भी सुन पाती हैं।" विन्दो भी अपने इस देहाती जीवन से
असन्तुष्ट न थी। सास उसका आदर करती थी; जेठानियां
उसे काम न करने देतीं। इसके अतिरिक्त जवाहर उसे
प्यार भी बहुत करता था। उसी घर में लड़ाई-झगडा होने
पर कई बार ऐसे मौके आए कि उसके जेठ अपनी स्त्रियों
पर हाथ चला बैठे। किन्तु जवाहर विन्दो से कभी एक कड़ी
बात भी न करता। यह हर तरह से, अपने देहाती ढंग से
ही सही, उसे सन्तुष्ट रखने का प्रयत्न करता। विन्दो भी अब
सुखी थी; उसे गहने-कपड़े की याद न आती थी। वैसे तो