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उनके आधित निर्धनों का मुफ्त इलाज करते थे। उनका दवा- माना रायसाहब की बैठक से लगा था। मरीज को दवा लेने के लिए रायमाहब की बैठक से होकर ही वैद्यराज के पास जाना पड़ता था। विन्दो की मां का इलाज भी यही वैद्यराज करते थे। घर में और कोई न होने के कारण विन्दो को ही मां के लिए रोज दवा लानी पड़ती थी।

एक दिन दोपहर को बिन्दो जब दवा लेने गई तो उसने देखा कि रायसाहब के पास एक सुनार कई तरह के गहने फैलाए बैठा है। सहसा इस प्रकार गहनों की प्रदर्शनी मामने देखकर इतने दिनों की सोई हुई विन्दो की गहनो की उत्कंठा फिर से जाग्रत हो उठी । क्षण भर के लिए वह भूल गई कि वह यहां किस लिए आई है। वह उत्सुकता पूर्वक उन फैले हुए गहनों के पास बैठ गई और बड़े चाव से उन्हें उठा-उठा कर देखने लगी, उसमें एक तीन लड़ की कंटी थी जो बिन्दो को बहुत पसंद आई। उसने उस कंठी को कई पार उठाया और रखा; और अन्त में एक ठंडी सांस के साथ वह उसे वहीं रख कर अलग खड़ी हो गई। रायसाहब ने भी यही कंठी पसंद की। बाकी गहने वापिस करके सुनार को दाम देने के लिए दूसरे दिन बुलाकर उन्होंने उसे रवाना कर दिया।

यद्यपि विन्दो को उमर की राय साहव की लड़कियां थीं, किन्तु फिर भी बिन्दो उनकी कुदृष्टि से बची न रही। उसके रस समय के हार्दिक भाष रायसाहब अच्छी तरह ताड़ गये और पार करने का यही उपयुक्त समय देखकर वे हंसते हुए बोले- “विन्दो यह कंठी तुम्हें बहुत पसंद आई है; पहिनोगी?" एक प्रकार की अव्यक्त आशा से