५५
डोसे कई गुना ज्यादा कीमती है; किन्तु इतने पर भी उस कंठी को यह भूल न सकी रह-रह कर कंठी उसकी आँखों के प्रागे मूलने लगी। फिर उसने एक युक्ति सोची। यह हो सकता है कि जैसे वह मुझे छलना चाहते हैं में भी उन्हें छर्लं । उनसे कंठी लेलं फिर यच कर भाग श्राऊं। ऐसे अनेक तरह के संकल्प- विकल्प करती हुई बिन्दो सोगई।
दूसरे दिन दोपहर को विन्दो को फिर दवा लेने के लिए जाना पड़ा । पहुँचकर उसने देखा कि रायसाहब की मसनद के पास उसी तरह की चार कंटियां पड़ी हैं। विन्दो के पहुंचते ही रायसाहब में उसे बैठने के लिये कहा। यिन्दो बैठगई। कल उसने जितने संकल्प लिए थे उसे इस समय याद न रहे। फैठियों की चकाचौंध के सामने विन्दो को सब कुछ भूल गया। विन्दो के सामने ही रायसाहय ने एक कंठी फको तौला कर उसकी कीमत २५०) रुपये भुनार को देकर विदा किया। विन्दो चकित रष्टि से कभी उस कंडी की ओर और कभी उन रपयों की तरफ देखती थी। च्यापारी के जाते ही जैसे उसको तन्द्रा दृटी। वह उरकर बड़ी होगई; योली-"दवा दिलवा दीजिए मैं जाऊं देरी होती है।"
'अभी कहां की देरी होने लगी ।" कहते कहते रायसाहब ने एक फठी विन्दो के गले में पहिना दो और उसे जररल पकड़ कर एक बड़े शोशे के सन्मुख खड़ा कर दिया, फिर उसकी तरफ सतृष्ण नेत्रों से देखते हुए बोले-
अपनी सुन्दरता देखो, वहीं विन्दो है या कोई दूसरी?" चिन्दो मंत्रमुग्ध सी देखती रह गई । वह अमी