पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/२००

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अम्मिला बगरी । अमित अगाध अनन्त प्रीति की भर नयनो मे रीति भली. धारण कर स्वकर्म-निष्ठा की मति मे अचल प्रतीति भली, सती आम्मला की मजुल छवि हिय-हिडोल मे दुलराते, वचनो से गम्भीर नेह की नव-कलियो को हुलसाते, सुभट लखन, वचनालियों यो- बोले निपट सनेह भरी, ज्यो निदाध की दोपहरी मे शीतल रस-फुहियाँ ३४ करुणा-वदिनि, प्राणानन्दिनि, गम्ये, विकल कुरगिणि,हिय-अवलम्बिनि, मन-सर-हसिनि, तुम रम्ये, मेरे जीवन की तुम स्वामिनि, स्नेह-यज्ञ की हवन-त्रिये, मेरे वासन्ती यौवन की- तुम प्रवालिके नवल, प्रिये , मेरे जन्म-जन्म के तप की, तुम पावन फल-रूप बनी, तुम मेरे नयनो की दर्शन- शोभा रूप अनी। "जीवन-सगिनि, अन्प १८६