पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/२३

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प्रथम सर्ग 1 त तुम भूलो कि यह है आर्य नगरी यहाँ, ऐ कल्पने, हो जा सजग, री, निपट सकेतमय है यह सुभग, री , यहाँ है गूढ आशय-युक्त डगरी । ६ सुदृढ़ है, शक्तिशाली द्वार यह है , प्रतापी राज-असि की धार यह है पुरस्कृत शिल्प विद्या सार यह है धरा-धारी धनुष का भार यह है । 2 ७ अनेको क्रुद्ध रिपुत्रो के दलो को- दलित करके चखाया कटु फलो को, वही प्राचीर यह, आर्य-स्थलो को, सुरक्षित कर रही है निमलो को । ८ } विपुल शस्त्रास्त्रो से पोषिता है शतघ्नी-घोष से उद्घोषिता है सुधन्वा धीर नर से ऊशिता है , धनुष-भाले-गदा से भूषिता है । ९ द्विशत पादावली के अन्तरो पर- बने है शिखरधारी बुर्ज सुन्दर , जहाँ से नौबतो की चोब सुनकर- जनक-रिपु कॉपते है भीत, थर-थर ।