ऊम्मिला २०१ एक क्षण आता है जीवन में 'नवीन' ऐसा, जव क्षुब्ध मौन पारावार लहराता है, उमड़ आती है ऐमी बेबसी की लहरी कि शब्द-दैन्य-भाव हिय बीच हहराता है, व्यथित हृदय-तल मथित, थकित होता, केवल निश्वाम-मय घोष पहाता है, कर्पण, घर्षण, अश्रु-वर्पण के ताण्डव में मौन वेदना का उत्तरीय फहराता है, उस क्षण हृदय सिन्धु की उन लहरो मे, सब शब्द कौशल बह अवग जाता है, ढह जाना कृत्रिम भापा का व्याकरण-भौन, केवल तन्मय मौन, गौण रह जाता है । ? २०२ कव कैसे आता है जीवन में 'नवीन' क्षण, जब घन रण ठन जाता है अपने आप मौन-भाव, अभिव्यक्ति-भाव गुंथ-गुंथ जाते, गोपनीयता के रण ऑगन मे चुप-चाप, विन बोले-चाले, नयनो के झरोखो से झॉक- झोंक झट तकने लगता है हृदय-ताप, कभी आँसू बन, कभी रिक्त चितवन बन, हिय की व्यथा छलकती है अतुल अमाप, कौन वेदना-दानी रसज्ञ है जिसने दिया, शब्द-पटु रसना को दान यह मौनालाप? यह मौन-भाव लीलामय का वरदान है ? या कि यह केवल है एक मूक अभिशाप? २७०