पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/३०२

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ऊम्मिला लखन, वर्ष, मास, दिन, रात, प्रात औ,' सन्ध्या, त्रुटि, घटिका, पल, क्षण, इन सब को अतिलषित कर, फिर लौटेगे श्री राम, बहन, तुम्हारी सीता भी, श्री- रामचन्द्र की छाया-सी,- अवधि अन्त में अवध आयगी 'ब्रह्म-जीव बिच माया सी,' वह देखो, भविष्य के कोने- पर लौ-सी सुलगाए वह- नन्ही प्राशा विहँस रही है, हलकी ज्योति जगाए वह ।” २३८ शुद्ध दीर्घ दर्शन की, जीजी, है सामर्थ्य बडी, तुम भविष्य दृष्टा हो, मैं हूँ- वर्तमान के बीच पडी, नही दीख पडती है मुझ को आशा की किरणे झिलमिल, इसीलिए तो जला जा रहा- है मेरा यह हिय तिल-तिल, जब तुम कहती हो, भविष्य है परम सुखद, चिर-मगलमय, तब कुछ-कुछ कम हो जाता है इस मन का यह जगल-भय, २८८