पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/३०३

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तृतीय सग बहन, २३६ मुझे नही दिखलाई पड़ती भावी की स्वरूप-रेखा तो अवलम्ब बनी है अनूप-लेखा, तुम कहती हो, इसीलिए तो- वह भावी मगलमय है ? यो तो, यह मेरा जीवन-थल पकिल है, अति जलमय है, राम-वल्लभा के वचनो पर मेरा है विश्वास, इसी सहारे पार करूँगी अवधि-उदधि गम्भीर गहन ।" २४० "क्यो कातर हो रही, मिले, मुझे न अधिक अधीर करो, अपना वह विश्वास दिखा दो, मेरी दुविधा-पीर हरो, हम आर्यो के लिए, ऊम्मिले, काल सदा नि सीमित है, वह अशेष है, अन्तहीन है, वह तो सदा अपरिमित है, वर्तमान कर्म-साधना, भावी ही जीवन-फल है, वही मुक्ति-निवार्ण, वही है, त्राण, वही स्थिति अविचल है । २८६