पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/४६६

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ऊम्मिला नेह-सगाई है गई, प्रणय-पाणि पिय हाथ, दृढ अनन्य आश्रय मिल्यो जीवन भयो सनाथ 1 ३२० बॅधी चूनरी पीय के, उत्तरीय के सग, गठबधन चोखो भयो, उमड यो नेह अनग 1 ३२१ विप्रयोग के क्षणन मे भनक परी यह कान, होत न तप-आचरण बिन, पिय दरसन मुदमान । ३२२ धारि हिये मे, अहर्निशि, पीय ध्यान अनमोल, अलख जगावत नेह को बोलि अबोले बोल । ३२३ वाला जोगिनि बावरी चली जात अलमस्त, त्रस्तभाव भागे सकल, भयो भोग-भय अस्त । ३२४ दग्ध वासना-क्षार की भस्म विभूति रमाय, ध्यान-मग्न जोगिनि भई, अलख चरण मन लाय । ४५२