पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/४६७

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पचम सर्ग जागरूकतामय भयो जोगिन को मब काल, गुडाकेश जाके सजन, किमि मोवे सो बाल ? प्रीति जगी, निद्रा भगी, लगी समाधि प्रचड, नाम रटन की धुनि लगी अहरह, सतत अवइ । ३२७ मोह छुट्यो, माया मिटी, टूटे अनियम दाम, निरलमना पूरित भये निशि-दिन के सव याम । ३२८ विरह-अग्नि-धूनी तपन, काह पासन बैठि, मजन-ध्यान-मग्ना भई, अन्तस्तल मे पैठि । ३२६ मोरठा भय उनीदे नैन, मन राच्यौ पीतम-चरण, लखन नाम के बैन, निशि-दिन निकमत हृदय नै । ३३० प्रेम-योगिनी हौ बनी, पीतम-ध्यान-समाधि, छूटि गई ससार की, सब व्यवहार उपाधि । ४५३