पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/४७०

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ऊम्मिला ३४३ ध्यान आपुने सजन को धरिबी नित दिन-रैन, तजिबौ प्रेय विचार मय योग छैम को ऐन । सतत धारणा मिलन की, हिये राखि अनुरक्त, चलिबो जीवन डगर मे, लोक-लाज करि त्यक्त । ३४५ प्रेम-योग मे मिलत यो नित समाधि-आनन्द, चिदानन्द मय, भक्ति युत, मिलत मुक्ति स्वच्छन्द । ३४६ ज्ञान योग सायास है, प्रेम-योग अनयास, एक शून्य मय ध्यान है, दूजो दरस-बिलास । ज्ञान योग मे रहत है नित निरोध को त्रास, प्रेम योग बन्धन रहित विनिर्मुक्त आभास । ज्ञान योग अभ्यास में बरजोरी को सग, प्रेम योग के पाठ मे, स्वेच्छित हृदय-उमग ।