पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/४९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

"जीजी, दो-दो काम कहो मैं कैसे करूँ ? बताओ कथा सुनू ? या शोभा देखू ? यह मुझ को समझायो, ऐसी-ऐसी बड़ी-बड़ी ये बाते तुम ने जानी ? जीजी, तुम तो बन बैठी हो बस पूरी गुर्वाणी । जब तुम झरने, फूल, पक्षियो की बाते करती थी,- जब तुम पर्वत-शोभा कह कर मेरा मन हरती थी,- तब मैं समझ रही थी मानो तात चले आये है- कह-कह कर ये बाते मेरे मन को उलझाये है । "मै जब अच्छी कथा कह रही होती हूँ तब तुम यो- सदा, ऊम्मिले, बीच-बीच में बकती जाती हो क्यो? मैं क्या करूँ ? तात ने जैसी बाते मुझे बताई - वे सब मम हिय में चित्रित हो आज उभर कर आई। अब न बीच मे गडबड करना, तुम अब सुनती रह्ना- प्यारी-प्यारी यह छोटी सी सारी गाथा, बहना 1 हाँ, तो मैं क्या कहती थी? हाँ, हॉ, गान्धार नगर राज्य कर रहा था नृसिह इक राजा उस प्रान्तर मे। उस राजा के एक कुँवर था, और एक थी कुँवरी, सुनती हो?"-"हों,एक कुँवर था और एक थी कुँवरी।" "राजा शिक्षाय देता था शास्त्र शस्त्र की उनको, दी थी गुरु ने निर्मल दीक्षा कई अस्त्र की उनको।