पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५१

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उसी राज्य के निकट अनार्यो का राजा बसता था- जो गान्धार देश के राजा से लडता रहता था, कई बार उस ने परास्त होकर हा-हा खाये थे आर्यो की उदारता से फिर स्वाधिकार पाये थे। उसी देश के उस य कश्चित् राजा ने जब देखा- सिह-शावकी प्रार्य सुन्दरी को, जब उसने पेखा,- तब वह फिर से युद्धोद्यत हो गया और यो बोला- कृतब्नता का दुष्ट भाव ज्यो जगती मे हो डोला । ६७ मेरी पुत्रवधू होगी यह आर्य सुन्दरी लौनी, अथवा भेरी बजा चलेगी फिर मेरी अक्षौणी, कर दूंगा गान्धार देश का गर्व चूर्ण मै क्षण में, अब की बार मिलाऊँगा मै उस नगरी को कण मे । ६८ आर्य नृपति गान्धार देश के यह सुन क्रुद्ध हुए यो- दिनमणि अपने विस्तृत नभ-पथ मे अवरुद्ध हुए ज्यो, भौहो मे बल पड़े, ऑख से निकले अग्नि-अंगारे, असि खनकी, धनु तने, बज गये भेरी और नगारे । हिम मण्डित गान्धार देश की श्यामल घाटी-घाटी- हुई निनादित, वीरो ने निज तन से वह सब पाटी, उमड चली शोणित की सरिता, आर्यवीर सब कडके । ढेर लग गए मुण्ड-झुण्ड के और सहस्रो धड के।