पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५३४

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ऊम्मिला सदा, शू खला बनी, ५ क्षण - प्रावर्तन - अनुक्रमण मय, चलन-कलन मय काल सदा, है त्रिकाल-मडित त्रिपुड युत, महाकाल का भाल धूप, छाह, प्रान , सन्ध्या, निशि, दिवसो की सूर्य, चन्द्र, भूमडल, ग्रह, मब- चलते गति अपनी - अपनी, काल सदा आकाश-देश मे, चलिता गति से बोधित है, मानव मन मे देशान्तर से समय सदा अनमोदित है। ६ 'अवधपुरी से लका तक जो, बनी एक पथ की रेखा, जिससे होकर आर्य-सभ्यता दक्षिण जन-पद देखा, जिस रेखा ने, किरण-जाल बन, किया प्रकाशित अन्ध विजन, उसका मडित होना ही है, अवधिकाल चलन-कलन, अत अवध से लका तक का नाम हुआ चौदह वत्सर, देश काल का प्रकट हुआ यो, “चिर अवलम्बन अपरस्पर । ५२०