पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५४

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८० आई अति भारी विपत्ति है आज देश. पर अपने, नीच अनार्य शशक आया है सिह देश मे खपने, मेरे पिता और भाई को उस ने छल के बल से, वन्धन-युक्त किया है, आनो हम जूझे उस खल से । ८१ भाई, पिता, पुत्र जो अपने करने युद्ध गये है- वे नरपति के पकडे जाने से हत-बुद्धि हुए है, चलो, आज इस पूर्ण यज्ञ मे बहनो, आहुति डालो, अपने-अपने तीर धनुष को तुम सब आज सँभालो। ८२ कहे न कोई---आर्य-देश की ललनाएँ कायर है, दिखला दो तुम हृदय तुम्हारे मृदु है पर पत्थर है । कस लो बेणी, कटि-पट बॉधो, लेलो धन्वा, भाले, चलो, करो ऐसे प्रहार जो अरि के हिय मे शाले । ८३ आयं देश के वृद्ध पितामह, आप सभी है ज्ञानी, भेजे आप सुताएँ , वधुएँ, दे निज आशीर्वाणी , अपने शोणित को देकर निज देश स्वतन्त्र करे वे,- निष्फल अरि की कुटिल नीति का यह कटु मत्र कर वे । आज आग लग जाए ऐसी, धुआँ उठे चहुँ ओर । आर्य पुत्रिया, रणचण्डी बन थामे निज धनु-डोर । अरि के कलुषित हृदय-देश को बेधे, कर दे क्षीण । आज दिखा दे वे अपने असि-धनु के हाथ प्रवीण ।