पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५४३

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पष्ठ मग विज्ञानी, २३ सिह-द्वार खुल है गढ़ क, प्रहरी खडे शस्त्रधारी, पुरवासी गड म ह ग्रान- जाते, लिए भट भारी, घोर नगाडो से, दुन्दुभि म, घन निनाद की धार बही, गोमुख, गृ ग, शम्ब बजन :-- अम्तम म ध्वनि गूंज रह लक-गजश्वर नृपति विभीषण अभिपकान्मब के कारण है मज्जित लक राजधानी । २४ राज सभा मे पुर-नर-नारी अति प्रसन्न, एकत्रित चतुर शिल्पकारो की कृति म सभा-भवन अनि चित्रित है, मुक्ता, मणि, हीरक, नीलम की- जग-मग जग-मग ज्योति जगी, मानो अम्बर में अनगिनती की भीड लगी, बहुरगी वस्त्रो की मणियो-- मे है झलक रही झाई, मानो झलक रही दर्पण-गत इन्द्र - धनुष की परछाई । नक्षत्रो ५२६