पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५४२

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अम्मिला उन्मुक्त सभी, उन्मुक्त पताकाएँ किन्तु आज की बात और है, आज और ही है प्रानन्द, आज मुक्ति का मिला सँदेशा, सकल दिशाएँ है स्वच्छन्द, वरुण मुक्त है, मुक्त मरुद्गण, वायु मुक्त, अब जग मे कोई क्यो होगा परवश, बन्धनयुक्त कभी ? इसीलिए हर्षित लहराती विश्व-मक्ति-सन्देश वाहिनी ये सब दिशि फहराती है । २२ लक दुर्ग के कोट - कॅगूरे नव सज्जित हो विहस रहे राम-चिन्ह - युत केतु अनेको दुर्ग-शिखर पर विलस रहे, गढ प्राचीर हरित ल्लव से, चीनाशुक - स सज्जित है, अथवा दुर्भेद्यता, दुर्ग की कोमलता में मज्जित है, बुजों से सैनिक दल की यह बहती अट्टहास धारा, ज्यो नर, शिलाखण्ड भेदन कर, प्लावित करते जग सारा। ५२८