पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५६२

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ऊम्मिला 7 तुम अपने कहते है नाह वेद, किन्तु हम कहते है जानो-- नही जानते तो प्रयत्नत को पहचानो, पर, वे इति-निश्चितता-वादी, नही देखते है इस ओर, अपितु जगत मे फैलाते है, नित-प्रति अपने कर्म-कठोर , पर पीडक, स्वातत्र्य-विनाशक, जग-शोषक उनकी कृतियॉ-- नित दूषित करती रहती है जग की धर्म - कर्म - सृतियाँ । ६२ भौतिक - वाद, चेतना विरहित, है वह निपट निराशा - वाद | राजस्, तामस् गुणमय वह है मानव-मन का मत्त प्रमाद, इस जीवन के परे कुछ नही, यो कहते है जड - वादी मन -प्रसाद - शून्य है, उनके-- कर्म नही है अविषादी, आत्म - वाद मे है अनन्तता का अति रुचिर-ज्ञान - वैभव, वहाँ नही सचय-सचय का सुन पडता है कर्कश रव । SALAM