पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५८२

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अम्मिला प्रगति, धर्म-रति, सत्कृति, सन्मति, सम्भ्रम कचुकि-त्याग, सदा-~- चिरजीवन का तत्त्व यही है, यही भावना है वरदा, कचुकि-त्याग,प्रगति,यह गति-विधि, अमित कष्टकर है, राजन्, किन्तु कष्ट-यत्नाच्छादन से--- अपिहित मोक्षभाजन, चिर-जीवन-अधिकार - प्राप्ति है केवल -विनोद नही, बिना प्रयत्नो के होता है यो ही आत्मिक-बोध कही ? सदा बाल- भेदन का १०२ जीवन क्या है ? है प्रचण्ड यह, गति - सक्रमण सचेतन का घूर्णित घोर-चक्र है विभु का, यह जडता के चलित अनवरत गति मे भी है, समता सस्थापित निर्गति, गति में गति-शून्यता भरी है, ताण्डव मे भी है सम-यति, यत्नशीलता की गति में है अतुला निर्गति, समता की, कैसी अद्भुत छटा मोहिनी-- यह जीवन की क्षमता की। ५६८