पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/६१०

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ऊम्मिला १५७ सच बोलो, क्या करते हो तुम सदा ऊम्मिला का ही ध्यान ? योग-साधना मे भी क्या है, सदा ऊम्मिला का प्रणिधान?" "भाभी, तनिक राम से पूछो, क्या हो जाता है मन मे, कैसे मीते' 'सीते' करते, विचर थे वे वन-वन मे, मै तो फिर भी छोटा ही हूँ, मेरी कौन बिसात, अहो, "अजी, बता दो तुम्ही, न सकुचो - देवर, मन की बात कहो ।" "मन की बात? देवि, वह कबकी पैठ गई है हिय-तल मे, भस्म हो चुके है विकारमय सकल भाव ज्वलितानल मे, कथन - प्रेरणा - अन्तस्तल मे, निद्रिन-सी, सालस-सी मन की बात, क्या कहूँ तुम से, वह सचमुच नीरस-सी है, कहते है वह रस सूख गया कबका, अब है रहा एक रस केवल, भाभी, अपने मतलब का। जिसे रसज्ञ सुरस