पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/९२

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ऊम्मिला कई अहस्र वर्ष पहिले का रम्य गीत बह गा दे, भूतकाल के उदधि-गर्भ मे मीप शख कुछ ला दे । (राज-सभा मे ग णकानो का गीत) गै सखि, आज अयोध्या नगरी-उमडो आज अमो-या नगरी, चार जुगुल जोडी न कर दी, आठ दिशाये ये जगमग, री, उमडी आज अयोध्या नगरी । विकसित ह नभ-कुज, विहगम गाते मगल गीत सुहावन अरी अवध क्या? फुल्ल कुसुम से सजी हुई ह नभ की डगरी, उमडी आज अयोध्या नगरी । चिरकालीन, जन्म जन्मान्तर का यह योगायोग निहारा,- चारो स्रोतस्विनी बही, आई निज-निज सागर के ढिग, री, उमडी आज अयोध्या नगरी । नाम रूप नदियो ने खोया, जब से मिली उदधि मे धारा, सीता-राम ऊम्मिला-लक्ष्मण, हुई एक गति उनकी सगरी, उमडी आज अयोध्या नगरी । चारो राजकुमारो से लघु मन विदेह-ललियो का हारा हमरे कुंअर बडे हे रसिया, बडे पुराने है ये ठग, री , उमडी आज अयोध्या नगरी । यो गायन समाप्त होता हम को भी अब ज्ञात हुआ राम, भरत, रिपुसूदन, लक्ष्मण का यह नवल प्रभात हुआ , राम और मिथिलेश बँधे है- एक रज्जु मे , खूब सधे है , मानो अपनी दुहिता दे कर हर से मुदित हिमेश बॅधे है ; इसीलिए यह रम्य अवधपुर आज अनूप सजाया है- कुशल शिल्पियो ने मिल मानो स्वर्गिक साज लजाया है।