पृष्ठ:ऊषा-अनिरुद्ध.djvu/१२९

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अच्छी तरह पूछ परख करलेने पर ही किसी बात को मानवी हो । जोहैसो यह वाक्य उस वेद का है जिसका नाम अर्थवेद है।

राधा०--[आश्चर्य से ] हय ! अर्थवेद या अथर्ववेद ? इस वेद का नाम तो मैंने आज ही सुना ।

गङ्गा--सुनती कैसे? वह तो ब्रह्माजी ने जब चारों वेदों को अपने मुख से छोड़ा, तब इस अर्थवेद का सार भाग हमार गुरुजी के ही मुख में गुप्तरूप से डाल दिया।

महत--जोईसो विसेस तर्क करने की आवश्यकता नही है, गुरुवचन को ही शास्त्र का प्रमाण मानना चाहिए । विष्णु पुराण मे लिखा है कि एक समय श्रीविष्णु भगवान् क्षीरसागर में सोये हुए थे कि इतने में वहाँ भृगु रिषी जा पहुंचे। वहाँ उन्होंने श्री विष्णु भगवान् को शेष शय्या पर सोया हुआ देखकर अपना अपमान समझा । और तत्काल विष्णु भगवान की छाती पर जोर से एक लात जमाई । लात के लगते ही विष्णु भगवान् छठ खड़े हुए और उन्होंने भृगुजी का पाँव पकड़ लिया,तथा कहने लगे कि हे रिषिराज मेरे इस कठोर शरीर पर लात मारने से आपके पॉवमें कहीं चोट तो नहीं आई !(गद्गद् होजाना और गला भराना) अहाहाहा ! ऐसे पर ब्रह्म विष्णु भगवान् की झांकी छोड़कर जो लोग शिव जी की पूजा करते हैं, वे बड़ी भूल करते हैं।

(इतने मे शैव संप्रदाय के एक मनुष्य का वहां आना )

शैव:--क्या बकता है मूर्ख ! इन भोले भालों को मनगढंत बाते सुनाकर धोखे में डालता है और शैवसम्प्रदाय की निन्दा के शुन्द मुंह से निकालता है !