पृष्ठ:ऊषा-अनिरुद्ध.djvu/१४१

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वीर अभिमन्यु

(लेखक-प० राधेश्याम कथावाचक)

बम्बई की 'न्यू अलफ्रेड थियेट्रिकल कम्पनी' का यह लोकप्रसिद्ध नाटक है । इस नाटक की बदौलत कम्पनी ने खूब धनार्जन और यशार्जन किया है। हिन्दी में अपनी शान का यह पहलाही नाटक है जो पारसी नाटक मञ्चपर खेला भी जाता है और पाय विश्वविद्यालय की "हिन्दी भूषण" तथा 'एफ़, ए० क्लास की परीक्षा की पाठ्य पुस्तकों में भी स्वीकृत हुश्रा है।

संयुक्त प्रान्त के शिक्षा-विभागने मी अब इस नाटक पर दृष्टि डाली है, और इसे 'ऐङ्गलो वर्नाक्यूलर, सथा 'वर्नाक्यूलर स्कूलों में पारितोषिक देने एवम् लाइब्रेरियों में रखने के लिये

हिन्दी के मशहूर अखबारों ने भी इसके लिये बढ़िया २ रायें दी है । देखियेः-

सरस्वती--'नाटक मे वीर और करुणारस का प्राधान्य है।'

भारतमित्र--'वीर-अभिमन्यु हिन्दू आदर्श को सामने उपस्थित करन- वाला नाटक है।"

ब्रह्मचारी--“रोचकता और रसपरिपोष का तो यह हाल है कि पढते २बीच में छोड देना किसी विरले ही पुरुष पुङ्गव का काम होगा।"

आज--"अपने पुरुषों के गौरव तथा कर्तव्य परायणता का चित्र उत्तम रीति से खींचागया है।"

सनातनधर्म पताका--"इसके पुरातन भाव और नई पद्य रचना से हिन्दी साहित्य के प्रेमियों को अवश्य ही यथेष्ट लाभ पहुंचेगा।'

प्रताप--'स्टेजपर सफलता पूर्वक खलाजाचुका है,हम लेखककोवधाई देते है

प्रतिभा--'नाटक बहुत अच्छा है। बड़ी सफलता सं खेला जाता है।

तीसरीवार दसहजार छपकर तयार हुआ है। दाम १) रु०


पता श्रीराधेश्याम पुस्तकालय, बरेली।