पृष्ठ:ऊषा-अनिरुद्ध.djvu/१९

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नट––

जय हरिहर सुख के सदन दुःख विनाशन-हार।
एक रूप से विश्व के, पोषण पालन हार॥
रंगभूमि पै आपके, गुणगाने हैं आज।
शक्तिपते, वह शक्तिदो, सुफल होंय सब काज॥

नटी––नाथ, आजतो आपने पड़ा विचित्र ध्यान किया है, हरि और हर दोनों का एक ही प्रार्थना में गुणगान किया है!

नट––प्रिये, यह भारत का दुर्भाग्य है जो सम्प्रदायों के झगड़े इस देश की उन्नति नहीं होने देते। शैवलोग वैष्णवों के द्वेषी हैं तो गणपति के उपासक शाक्त धर्म की निन्दा करते हैं। सनातनधर्मियों द्वारा जैन धर्मियोंका हास्य और जैनधर्मियों द्वारा सनातनधर्मियों का उपहास! हाय! जाति का इतना ह्रास! सर्वनाश, सर्वनाश!

नटी––तो क्या आज जाति-संगठन का ही नाटक दिखाना है?

नट––प्रिये, यह काम तो देश की वेदी पर बलिदान होनेवाले उन धर्म वीरों का है, जो सर्वस्व अर्पण करके हिन्द-संगठन के लिये कटिबद्ध हुए हैं। हमें इतने बड़े मैदान में नहीं जाना है।

नटी––[आश्चर्य से] तो क्या बताना है?

नट––केवल शैव और वैष्णव सम्प्रदाय के झगड़ों की चर्चा उठाना है। धर्म की आड़ में परस्पर लड़नेवाले धर्माचार्यों को प्रेम और एकता के मार्ग पर लाना है:––