पुरोहित--महाहाहा ! राजराजेन्द्र, कन्या तो सारी सृष्टि की सुन्दरता लेकर भाई है। प्रभातकाल के आकाश के समान निर्मल, प्रातःकालीन वायु के समान मनोहर, अरुणोदय के समय बढ़ती हुई किरणों के समान तेजवती और सूर्योदय के समय पूर्ण विकास को प्राप्त होनेवाली कमलिनी के समान कोमल, उज्ज्वल, स्निग्ध और शोभावाली है।
वाणासुर--यह सब भगवान शंकर और भगवती पार्वती का फल है । शुक्लजी आपने उसका कुछ नाम भी विचारा है ?
पुरोहित--हां महाराज। नाम विचारने के लिये तो मैं ने अपने तमाम पोथी पत्रों को लौट पलट डाला है। मेरे विचार से पृथ्वीनाथ, उषःकाल में जन्म लेने के कारण "उषा नाम रखना उचित होगा।
वाणासुर--ऊषा! अहा, बड़ा अच्छा नाम है, बड़ा प्यारा नाम है, उमाजी की राशि से मिलता हुआ नाम है। वही रखिये !
पुरोहित--और श्रीमहाराज......
वाणासुर--कहिये!
पुरोहित-जन्म पत्रिका भी मैं ने तैयार करली है !
वाणासुर--महा, यह तो आपने बड़ा अच्छा काम किया । अच्छा तो बताइये ग्रह कैसे हैं ?
पुरोहित--राजेश्वर, जन्म-पत्रिका बताती है कि आपकी पुत्री विद्या में सरस्वती, गुणों में सावित्री, रूप में उमा और बल में दुर्गा के समान होगी।
वाणासुर-आयु?