पृष्ठ:ऊषा-अनिरुद्ध.djvu/५१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(३४)

गोमती०--चुप मूर्ख,गुरु की बात,काटता है ? भस्म होजायगा !

माधो०--नब दस हजार राजाओं से भी वह बड़ा नहीं उठा तब-

"नाना भटयोद्धानां प्रेषयामास रावणः"

रावण ने भटयोद्धाओ के नाना को भेजा । अंतर्यामी विष्णु अवतार रामजी ने भटों के नाना को भाते हुए जानकर हनुमानजी को बुलाया । उन्होंने-

“कपिःसंगृह्य तान् सर्वान् मर्दयामास सत्वरं।"

सब बड़ों को पकड़ २ कर जल्दी जल्दी मसल डाला ! तब वह पड़े परोसेगये और सब ने खाये । इत्यार्षे श्रीवाल्मीकीय रामायणे बालकांडे समाप्तम् । बोलो श्रीरामचन्द्र की जय ।

सब-जय।

माधो०--सुनो भाई, श्रीरामायणजी में लिखा है-

"दुर्लभं नाम रामस्य मनुष्यैरन्तिमे क्षणे"

अर्थात् अन्त समय में मनुष्यों को राम नाम नहीं ले मिलता। इसलिए अभी लेलो। बोलो श्री रामचन्द्र की जय ।

सब--श्रीरामचन्द्र की जय ।

कृष्णदास का प्रवेश ]
 

कृष्णदास--(स्वगत) इन्हीं की-इन्हीं की-वैष्णव संगठन को इन्हीं जैसे पुरुषों की आवश्यकता है। संगठन ऐसे ही महात्माओं द्वारा हो सकता है :--

येही हैं संगठन शब्द को घर २ जो पहुंचायेंगे।

अपनी आवाजों से सोता वैष्णव धर्म जगायेंगे। (प्रकट ) महन्तजी महाराज, प्रणाम ।