पृष्ठ:ऊषा-अनिरुद्ध.djvu/५६

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जैसा बतायेंगे वैसा कहदिया करेगे । क्योंकि रामायणजी में लिखा है--

"धर्मस्यैवोपकाराय उद्भवन्तीह साधवः "

हमसाधू हैं, हमारा धर्म के ही लिए उद्भव हुआ है। इसलिए धर्म का काम हम नहीं करेंगे तो कौन करेगा ?

कृष्ण--ऐसा है तो पाइए, मेरे साथ चलने का कष्ट उठाइए।

माधो०--अच्छा भक्तराज, जैसी तुम्हारी इच्छा । चलिए ।

कृष्ण --यह वह चिंगारी है जो इस समय अविद्यारूपी रास्त्र से छुपी हुई है । परन्तु जिस समय संगठन-मण्डल की ज्ञानवायु चलेगी तभी ये चिंगारी भी चटकेगी । और ऐसी चटकेगी कि जिससे घृणा-प्रचार, जनसंहार, मादि समस्त विकार भस्म हो जायेंगे, और संसार के निवासी सच्ची शांति पायेगे।

सुखद सत्संग होगा विश्व का मङ्गल मनाने को ।
जगेंगे जग के सब वैष्णव, सभी जगके जगाने को

गाना

हम घर घर सदा लगायेंगे, वैष्णव का धर्म जगायेंगे । सञ्चा सत्संग रचायेंगे, वैष्णव का धर्म जगायेंगे।

सिखलायेंगे विश्व को, प्रेम ज्ञान और कर्म ।
फैलायेंगे जगत में, शुद्ध वैष्णव धर्म ॥

जीवन को सुफल बनायेंगे, वैष्णव का धर्म जगायेंगे ।

पहुँचायेंगे गगनपै, अपना विजय निशान ।
मृतक तुल्य संसार को, देंगे जीवन दान ।।

खुद भी बलिहारी जायेंगे, वैष्णव का धर्म जगायेंगे ॥

(सब का जाना।)
 

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