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पृष्ठ:ऊषा-अनिरुद्ध.djvu/७१

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सुदर्शन--आपने तो अभी कहा था कि अपनी प्यारी के लाभ के लिये ।

चित्र--तो अब भी तो मैं कहती हूं कि अपनी प्यारी के लाभ के लिये । दुनिया में मेरी सब से प्यारी चीज़ क्या है, जानते हो?

सुदर्शन--जानता हूं, माता की सब से प्यारी चीज़ उसकी संन्तान होती है।

चित्र०--हां, तुम समझगये-इसीलिए मेरी सबसे प्यारी चीज़- यह अनिरुद्ध है। मेरी प्यारी की भी सबसे प्यारी चीज यह अनिरुद्ध है।

सुदर्शन--(आश्चर्य से) हयँ, आपकी प्यारी की भी प्यारी चीज ।

चित्र०--(स्वागत) चित्रलेखा, फिर बहकी ! देवर्षि मुझे संभालना । ( प्रकट) हाँ,मेरी सब प्यारी चीज-यात्मा है। और उस आत्मा की सबसे प्यारी चीज यह अनिरुद्ध है। इसीलिए मैने कहा कि यह मेरी प्यारी की भी प्यारी चीज है।

सुदर्शन--ठीक है, तो फिर इनके लाभ की बात क्या है ?

चित्र०--मैंने अभी एक स्वप्न देखा है कि भनिरुद्ध का विवाह होने वाला है।

सुदर्शन--राजकुमार का विवाह होनेवाला है ? कब? किस दिन ? किस जगह पर ? किस राजपुत्री से?

चित्र०--पहले बात पूरी होने दो!

सुदर्शन--अजी जरा ठहर तो जाओ, मुझे पहले खुशी तो मना लेने दो । राजकुमार क विवाह का समाचार सुनं और हर्ष प्रकट न करूं तो मुझ जैसा उत्साहहीन कौन हो सकता है ? देखिये मैं इस विवाह में बरी का जोड़ा लूंगा ।