पृष्ठ:ऊषा-अनिरुद्ध.djvu/७३

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चित्र०--जक माता स्वयं बेटे का पहरा देने भागई है, तब तुम्हें काहे की चिन्ता है?

सुदर्शन--कहीं बड़े महाराज नाराज न हों !

चित्र--अगर वे नाराज हों तो कह देना कि छोटी माता का हुक्म था !

सुदर्शन--जो आज्ञा ! लीजिए यह चला । परन्तु माताजी, भगर विवाह हो तो मेरे जोड़े, मोड़े और घोड़े का ध्यान रखमा !

[सुदर्शन का चलानामा]
 

चित्र०--(स्वगत) जान में जान भाई । चाल पलगई । वह भी किसके सामने, भगवान् विष्णु के चक्रसुदर्शन के सामने । कौन सुदर्शनचक्र १ जिसने बहुत से असुरों का संहार किया है, और दुश्मन की नीति को सदैव बेकार किया है। अब नारदजी इससे निपटते रहेगे ।:-

चक्रमें फंसकरके उनके, चक्र भी चकरायगा ।
ठीक इतने समयमें, यहाँ कार्य सब होजायगा।

बस, अब चलू और पलंग सहित भाकाश गमन करूं ।

इच्छा-शक्ती, काम कर, मंत्र सुफल कर योग ।
पहुंचे यह ऊषा निकट, हो ऐसा संयोग ।।

[पलंग सहित आकाश में उड़ना, पर्वा गिरता है।]