सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:ऊषा-अनिरुद्ध.djvu/७४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(५७ )

तीसरा दृश्य

-(स्थान रास्ता)-

[भोलागिरि और गौरीगिरि का हाथ में चिलम लियहुए आना]

गौरीगिरिः--

गाना

तम्बाकू नहीं है । मरगए, तम्बाकू नहीं है।
तम्बाकू ऐसी मोहनी, जिसके लंबे लबे पात ।
खाख टके का श्रादमी रे खड़ा पसारे हाथ ॥ तम्बाकू०॥
खाधु सन्त भी जब फेरी से तौर पाश्रम जाँय।
झोली खाली देखके रोवे, हाय तमाखू नाय ॥ तम्बाकू०

मोलागिरी०--ले अम्मी सो एक मुलका तम्बाकू और एक कली गांजे की झोली में और है । चढ़ा चिलम, मिटा राम ।

गौरी०--बम् शंकर, कांटा लगे न कंकर, मुजी लोगों को तंग कर और खाने पीने का ढंगकर, (चिलम चढाकर लेना हो बाबा भूतनाथ ।

भोला०--(चिलम लेकर ) अहा, जिसने न पी गांजे की कली उससे लड़के तो लड़की भली, ब्रो भाई गौरीगिरि । (गौरी को चिलम देना )

गौरी०--बम् भोले, कालहर, कंटकहर, दुःखहर, दरिद्रहर, (चिलम हाथ में लेकर) चिलम चमेली फूकदे दुश्मन की हवेती, सुनना हो भोलेनाथ ।:--