पृष्ठ:ऊषा-अनिरुद्ध.djvu/८५

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( ६८ )

सुना है वह पुजारी देवता का गान गाता है।
यहाँ खो देवता ही खुद पुजारी को बुलाता है।।

अनि०--बोलो, बोलो, मैं कहां आया हूं ?
ऊषा--जहाँ आना चाहिये था, वहाँ आये हो:--

किसी के मनमें भाये हो किसी के नैन में आये।
प्रभो तुम चैन बन, करके दिले वेचैन में भाये।।

(चिनला सहित ऊषा का प्रगट होना)
अनि०--हैं ! तुम, तुम..........
ऊबा--हाँ, तुम, तुम.........
अनि०--कोई स्वर्गीय प्रतिमा को ?
उषा--कोई स्वर्गीय देवता हो ?

चित्र--

न देवता है न कोई प्रतिमा, न कोई प्यारा न कोई प्यारी।
हैं सूरतें एक प्रेम की दो, उधर तो नर है इधर है नारी ।।

अनि०--देवी, वास्तव में तुम कोई स्वर्गीय सुन्दरी हो, इन्द्राणी हो, रवि हो या प्रक्षा की सर्वश्रेष्ठ पुत्री हो ।

ऊषा--देष, वास्तव में तुम कोई स्वर्ग के देवता हो, इन्द्र हो, काम हो या ब्रह्मा की सृष्टि के सर्वश्रेष्ठ पुरुष हो।

चित्र०--(स्वागत) दोनों पागल । [प्रकट] बहन ऊषा, होश में आओ। तुम्हारे सामने खड़े हुए देवता इसी भूमि के रल हैं। द्वारिकानाथ भगवान श्रीकृष्णचन्द्र के पौत्र राजकुमार अनिरुद्ध हैं।

ऊषा--हैं ! क्या ये द्वारिकाधीश के पौत्र हैं ?

चित्र०-और अनिरुद्ध जी महाराज, आपके सामने खड़ी