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पृष्ठ:ऊषा-अनिरुद्ध.djvu/८६

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हुई बालिका गजराजेन्द्र श्रीवाणासुर महाराज की प्यारी और इकलौती बेटी राजकुमारी ऊषा है ।

अनिल--ऊषा है, हाँ सचमुच ऊषा है :-

जब सचमुच सम्मुख ऊषा है तो अंधकारमय गलगाई। जब रातगई तो प्रात हुआ, मंठी सपने की बात गई ।।

अच्छा तो फिर मैं यहाँ कैसे पाया ?

ऊषा--मैंने बुलाया !

चित्र०--मैं लाई।

ऊषा--दिल ने खेंचा!

चित्र०--मंत्रशक्ति ले पाई :--

सपने में आपने जो मधुर मूर्ति दिखाई ।
प्यारी के धीर चित्त पै बिजली सीगिराई ।।
तत्काल चित्रलेखा यह तम आंधी सी धाई ।
बादल की तरह आपको लेकर यहाँ आई।।

भनि०--यह खूब रही, ऐसी सुन्दर मूर्ति और ऐसी माया फैलाई ?

ऊषा--इतना भोला चेहरा भौर इतनी चतुराई :-

अनि०--पराई चीज़ चोरी से चुराना इसको करते हैं। थिना जादूगरी जादू दिखाना इसको कहते हैं ।।

ऊषा-किसी को स्वप्न में भाकर सताना इसको कहते हैं । लगाकर आँख फिर आँखें दिखाना इसको कहते हैं ।।

अनि०-अच्छा मैं हारगया देवी.

ऊषा-जानेदो दासी हारी यह ।