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गङ्गा॰––जो आज्ञा गुरुजी महाराज!
माधो॰––और सुन, गुरूजी के बताए हुए पञ्चकर्म आज ही से याद करले। उन्हें भूल न जाना।
गङ्गा॰––वह पञ्चकर्म कौनसे हैं गुरूजी महाराज?
माधो॰––यह पञ्चकर्म यह हैं––
- (१) प्रथम ठाकुरजी के और रसोईजी के वर्तनजी को मांजना।
- (२) दूसरे गृहस्थियों से रोज मिच्छाजी को माँग कर लाना।
- (३) तीसरे रसोईजी को बनाना और सन्तोंजी के लिए खिलाना।
- (४) चौथे चिलमजी को भर कर गुरूजी को पिलाना।
- (५) पांचवें कोई चेलाजी या चेली जी आये तो उसे गुरुजी के पास ले आना।
गङ्गा॰––बस गुरूजी, यही पंचकर्म हैं।
माधो॰––हाँ बच्चा पंचकर्म तो यही हैं, पर भेखीजी की वाणी जी के कुछ शब्द और भी हैं जिन्हे खूब याद करले।
गङ्गा॰––वे शब्द भी बतादीलिए गुरूजी।
माधो॰––अच्छा तो उन शब्दों को भी सुन। जो कोई इन शब्दों पर विश्वास नहीं करता है वह घोर नर्क में जाता है। यह शब्द भण्डार बहुत गुप्त है। हर एक आदमी को नहीं बताया जाता है।