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एक घूँट

प्रेमलता––किन्तु महोदय! मैं आपके विरुद्ध आप ही की एक कविता गाकर सुनाना चाहती हूँ।

मुकुल––ठहरो प्रेमलता!

वनलता––वाह! गाने न दीजिये। अब तो मैं समझती हूँ कि कविजी को जो कुछ कहना था कह चुके।

(सब लोग एक दूसरे का मुँह देखने लगते हैं, आनन्द सबको विचार-विमूढ़-सा देखकर हँसने लगता है)

प्रेमलता––तो फिर क्या आज्ञा है?

आनन्द––हाँ हाँ, बड़ी प्रसन्नता से; हम लोगों के तर्कों, विचारों और विवादों से अधिक संगीत से आनन्द की उपलब्धि होती है।

प्रेमलता––किन्तु यह दुःख का गान है। तब भी मैं गाती हूँ।

(गान)

जलधर की माला
घुमड़ रही जीवन-घाटी पर––जलधर की माला।
––आशा-लतिका कँपती थरथर––
गिरे कामना-कुंज हहरकर
––अंचल में हैं उपल रही भर––यह करुणा-बाला।
यौवन ले आलोक किरन की
डूब रही अभिलाषा मन की
क्रन्दन-चुम्बित निठुर निधन की––बनती वनमाला।

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