पृष्ठ:कंकाल.pdf/११५

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मंगल, इस प्रवचन में अपनी अनुभूति सुनाऊँगा, घबरा मत । तुम्हारी सब शंकाधों का उत्तर मिलेगा। मंगलदेय नै सुन्तोष से सिर सुका दिया ! वह लौटकर अपने अहापारियों के पास इला भाया । आश्रम में दो दिनों से कृष्ण-कैया हो रही थी। गोस्वामीजी घाल-चरित्र वहवर उसका परहार करते हुए बोले- । घर्म र राजनीति से पीमिंत यादव-जनता का उद्धार करके भी शीबून ने देखा कि मादब ये अज गै शान्ति न मिलेगी। प्राचीनतंत्र के पक्षपाती नृशंस राजन्य-वर्ग मन्वन्तर को मानने के लिए प्रस्तुत न थे 1 हाँ, बहे गनत की विचारधारा सामूहिक परिवर्तन करने वाली थी ! क्रमागते किंया और अधिकार उसवै सामनै बाँप रहे थे । इन्द्र-पूजा बन्द हुई, बर्म का अपमान रजा फेस मारा गया, राजनीति उलटफेर ! ! अज पर प्रलप के बादल उमड़े । भूखे भेड़ियों के समान, प्राचीनता के समर्थक, पादयो पर इट पड़े 1 बार-बार शत्रु को पराजित करके भी औकृष्ण ने निश्चम दिया किं यूज़ को छोड़ देना चाहिए । | वे मद्कूल नो नैकर नवीन चपनिधेश की योज में पश्चिम की और धस पड़े । गोपाल ने यज छोड़ दिया 1 यही अङ्ग है । अत्याचारियों की नृशंसता से यई- कूल के अभिज्ञात-वर्ग ने यज्ञ को सूना पत्र दिया । पिले दिनों में, आज मैं भी ई पशुपालन करने वाली गोपियाँ-जिनके साथ गोपाल खेले थे, जिनके सुख को सुख और दुःख वो दुःख समझा, शिक्के साथ जिने, यो हुए, जिनके पशु के साथ में कड़ी भूप में घनी अमराइयों में, कल के कुंजों में विश्राम करते थे--- थे गोपियाँ, ६ मनी-भाली सरल हृम अपट हा गोपियाँ, उक्त-Tोक्त के हृदयबाजी गोपियाँ जिनके हृदम में दया यी, माया-ममता मी, आणि मी, विश्वास था, प्रेम का आदान-प्रदान पा,—इसी ममुना कै छारों में चुरों के नीचे, पसन्दा फी दिनों में, जेई की धुप में छह खेती हुई, गोरा बैंकर भौटती इई, गोपाल की कहानि हती । निर्वासित गोपाल की सहानुभूति हैं, चरा ग्रा के स्मरण हो, जुन प्रकाशभुर्ग आँखों व ज्योति में, गोपियों की स्मृति - धनुप-सी रंग जाती । वै याहानियाँ प्रेम से अतिरंजिरा , स्नेह से परिप्लुरा थी, आदेर से आई यौ, सबको मिलाकर चनमें एक आत्य क्षा श्री हृदय की वेदना थी, आँखों का अंगू या ! उन्हीं को सुनकर, इस ? हुए प्रन मैं तच्ची दुःख- १०६ : प्रसाद यादमय